सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

आज़ादी का ख़्वाब.

"नही अब बिलकुल नही" बहुत गुस्से में तस्लीमा ने अपने शौहर से कहा, उसका शोहर रिज़वान बहुत सादगी से बोला लेकिन तस्लीमा क्यों? क्यों डिवोर्स लेना चाहती हो? मेने तो कभी तुम्हे उफ़्फ़ तक नही कहा, तुमने जो कहा उस हर चीज़ को माना है फिर क्या हुआ? तस्लीमा ने 2 तुक कहा मुझे आज़ादी से चाहये समझे, मुझे तुम इस फ्लैट में बंद करके नही रख सकते,मुझे अपने हक़ के लिए आवाज़ उठानी है,मुझे आज़ादी चाहये,तुम और तुम्हारा दकियानूसी मज़हब मुझे नही रोक सकता, समझ आयी बात तुम्हें, रिज़वान रोने लगा बोला, हमारे मासूम बच्चों का क्या होगा? ये सुनकर तस्लीमा झटककर पलटी और अपना सामान उठाकर दरवाज़े को लगभग रिज़वान के और स्कूल गये हुए बच्चों के ऊपर डाल गयी, अभी उसके दो मासूम शायद उस बोझ को संभालने के किये शायद तैयार नही थे जिस बोझ को तस्लीमा अपने बच्चों पर डाल गयी,  तस्लीमा दरवाज़े को पीछे धक्का देकर बाहर निकल गयी जहा जाकर उसे अपने संघटन "स्वतंत्रता अभियान" की अध्यक्ष का वो बयान याद जिसमें उन्होंने आडम्बरों को पीछे धकेल आगे बढ़ने की बात कही थी, वो आज अपने आप को बहुत हल्का महसूस कर रही थी, मानों वो उड़ जायगी,उसे एक आज़ादी का ख्याल आ रहा था और ये वही थी जो उसके संघठन ने दिलाने की उसे बात कही थी।

वो तेज़ तेज़ कदमों के साथ रिक्शा से उतरने के बाद जल्दी से अपने संघठन के ऑफिस पहुंची, वहां जाकर उसने एक भरी मीटिंग में जाकर अपनी हेड को गले लगा लिया और खिलखिला कर हंसने लगी,उसकी हेड अस्मा ज़हीर एक पढ़ी लिखी , "मॉडर्न" , धर्म के आडम्बरों के ख़िलाफ़ लड़ने वाली एक नारी सशक्तक्तिकरण संघठन की अध्यक्ष ,उससे बोली "क्या हुआ बोलो तो तस्लीमा" , मै अपने पिछड़ेपन को पीछे छोड़ आयी, छोड़ आयी वो बच्चे को पालने वाली ज़िन्दगी,चूल्हा चौका, अब मैं आज़ाद हूँ, इतना सुनते अस्मा ज़हीर बहुत खुश हुई और बोली "वाह वाग लेकिन अभी ये शुरुआत है और उसे छोड़ दो अभी" जी बिलकुल तस्लीमा ने कहा, इतना सुनकर अस्मा ने उसका हाथ उठाया और वहां मौजूद लोगों से कहा "आज से तस्लीमा भी "आज़ाद" है, कुरीतियों से, आडम्बरों से, कुंठाओ से बच्चों के ढेर से अब अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी, अपनी मर्ज़ी क़ि शादी सब हक़ अपने कोई रोक टोक नही कोई रुकावट नही धर्म की भी नही,  यही तो हम चाहते है और इतना सुनते ही हौल तालियों से गूँज उठा, तस्लीमा और अस्मा समेत तमाम औरतें बहुत खुश थी।

तस्लीमा ने थोड़ी ही देर बाद बिना धार्मिक बध्याओं को माने सरकारी डिवोर्स अपने पति को भेज दिया,और उससे "गुज़ारे भत्ते" की भी मांग करि,बस वो नोटिस कुछ ही दिनों में अपना काम दिखा गया और सरकारी तौर पर तस्लीमा अब तलाक़शुदा थी, और धार्मिक ऐतबार से खर्च भी उसे मिल रहा था, अब तेज़ी से गुज़र रहे वक़्त के साथ तस्लीमा उस संघठन की उपाध्यक्ष बन गयी, और टीवी डिबेट्स पर आडम्बरों पर जवाब देने और कट्टरपंती मुस्लिमों को जवाब देने भी वही जाती थी, वही उन्हें हर बात का मुंह तोड़ जवाब देती यानी वो अपना मज़हब,घर, बच्चे और पुरानी ज़िन्दगी अपने घर के दरवाजे के पीछे के छोड़ आयी थी, लेकिन उसे एक कमी महसूस हुई पता नही क्या वो अपने संघठन में बहुत मायने रखने लगी थी, तो उसे वक़्त कम ही मिलता था इन सब चीज़ों का लेकिन फिर भी उसे एहसास ज़रूर होता था, लेकिन उससे भी ज़्यादा तस्लीमा कुछ भी थी एक शरीफ औरत थी, वो चीज़ों को पढ़ने लगी धार्मिक विषयों को टटोलने लगी लेकिन वो किसी भी धर्म को न मान "नास्तिक" बन चुकी थी, इस बीच वो सैकड़ों औरतों को अपने वाली "आज़ादी"दिल चुकी थी,अब उसे जो कमी,जो एहसास महूसस हो रहा था, क्यों पता नही लेकिन और औरतों देख वो भी खुश हो लेती थी की मेने एक कोशिश की है।

किसी काम से बाहर गयी वो काफी देर में ऑफिस लौटी तो उसने ऑफिस में सन्नाटा देखा, वो उलटी तरफ गयी कुछ नही,मगर वो जैसे ही मुड़ी उसने ऑफिस के अंदर नज़र घुमाकर देखा की, उसके संघटन अध्यक्ष "अस्मा ज़हीर" अपने चौकीदार से लिपटी हुई थी, ये देख कर वो वही रुक गयी,जाम सी हो गयी मानों एक आफत हुई हो, उसके मुंह से अलफ़ाज़ नही निकलें ,वो फिर भी लगभग दहाड़ कर बोली "अस्मा" बस इतना कहना था कि अस्मा हड़बड़ा गयी,कुछ समझ नही पायी,वो बाहर आ गयी और तभी तस्लीमा बोली क्या हो रहा था ये, तुम तो कहती हो की मर्द गलत होते है,धर्म ने हमें जकड़ा है, अस्मा बोली "व्हाट अ बिग डील" क्यों हल्ला मचा रही हो, अरे भूख न मिटाऊं अपनी ,तसलीमा बोली ये गलत है,
किसने कहा मैं नही मानती और सब करते है मेने किया तो क्या बस शादी ही तो नही है,मुझे बन्धना नही है अस्मा ने कहा, तस्लीमा छी धिक्कार है तुम पर ये कह कर उसने अस्मा को कहा जा रही हूँ इस गन्दी जगह से बाहर मै, और वो मुड़ गयी तभी अस्मा बोली जयगी कहा सब छोड़ दिया तूने,ये सुनकर तस्लीमा जम गई मानों वक़्त रुक गया और सोचँव लगई क्या गलती की थी मेरे बच्चों ने कुछ नही,मेरे शोहर ने उफ़ तक नही की,मासूमों की गुनहगार हूँ मै कोनसी आज़ादी? केसी आजादी?

तस्लीमा आगे जाने ही वाली थी की आवाज़ आयी "माँ माँ" तस्लीमा मुड़ी  और एक भयंकर ख़्वाव टूट गया उसकी आँख खुल गयी, वो झटके से उठी और उसकी नज़र घड़ी पर गयी वो 3 बजा रही थी उसका ध्यान अपने बच्चों पर उनमें से एक के नींद में माँ बोलते हऔर बेड पर सोये अपने शोहर पर गयी, वो उठी और साँस क़ाबू में करि देखा तो 23 सितम्बर थी, वो भयंकर ख़्वाब की याद को भूलती हुई, अपने दिल सहमा रही थी,और उसने याद किया कि अपने बच्चों को स्कुल छोड़ने के बाद उसे अपने स्कुल भी जाना है छोटी बच्चियों को पढाना भी है और अपने बच्चों को भी पढाना है लेकिन इससे ज़्यादा और क्या आज़ादी चाहते है लोग पता नही......

असद शैख़


शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

पार्टीशन

"इंडिया डन डिस" ये कहते हुए ओम ने अपने असाइनमेंट के लिए ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के स्टाफ रूम में कहा,जिसे कहने के बाद पूरे स्टाफ रूम में सन्नाटा था, ओम कुछ समझता या बोलता उससे पहले ही प्रोफेसर बोले "व्हाई यु चूज़ इंडिया" ओम बहुत तेज़ आवाज़ के साथ बोला सर इसलिए क्योंकि इंडिया हमारे सब्जेक्ट "कम्युनल हारमनी" के लिए बेस्ट है(ऐसा उसने इंग्लिश ने बोला) , उसके बाद स्टाफ रूम में बैठे बाक़ी स्टूडेंट्स आपस में बोलचाल करने लगे और ओम बड़ी अजीब तरह से सबको उसके इंडिया कहने की वजह से देखने लगा ,बरहाल उसने इंडिया अपने असाइंमेंट में लिखवाया और तेज़ कदमों के साथ स्टाफ रूम से बाहर निकलता हुआ यूनिवर्सिटी कैम्पस से बाहर आया लेकिन वो अब भी सबके आश्चर्य में पड़ रहने की वजह को समझ नही पाया, वो सोच में डूबा ही जा रहा था तभी उसका दोस्त अलेक्स बजाज(अनिल असली नाम था) अपनी बाइक पर तेज़ी से आकर उसके सामने रुका, जिससे ओम थोड़ा हड़बड़ा गया, अलेक्स बोला "यो ब्रो केसा है" और ओम उफ़ कहता हुआ उससे गला मिला , थोड़ी बातचीत हुई और अलेक्स ओम से बोला "हे ओम आर यू सेलेक्ट योर लोकेशन" हां इंडिया.. ये सुनते ही अनिल बजाज अरबपति बाप का बेटा, और ओम का बेस्ट फ्रेंड भी चुप हो गया और बोला, "ओके योर चॉइस आइल गो नाउ" ओम इस बार और गुस्से में हो गया आख़िर क्या आफत आ गयी, वो विदेश में रहने वाला और अपने देश से मोहब्बत करने वाला स्टूडेंट था, अब इतने लोगों से सुनने के बाद वो तमतमा गया और गुस्से में अपने रूम पहुँच कर ज़िद्दीपन पर उतर आया और अगले ही दिन दिल्ली के लिए वीजा अप्लाई कर दिया और थोड़े दिन में 3 दिन का वीजा उसे मिल गया और उसने अपनी  फ्लाइट बुक कर दी, अब वो जल्दी जल्दी अपने असाइंमेंट से जुडी चीज़ जमा कर सुबह तक रेडी होकर अपनी फ्लाइट में था,

वो एयर इंडिया की अपनी फ्लाइट में सोने की कोशिश में था,उसने अपनी नज़र घुमाई तो चारों तरफ भारतीय चेहरे नज़र आये तब उसने सोचा की ये दूसरे देश वाले कितना गया गुज़रा समझते है हमारे देश को, वो ये सोच ही रहां था तभी प्लैन में अनाउंसमेंट हुई दिल्ली पहुँच जाने की, उसने अपनी सीट बेल्ट बाँधी और फ्लाइट दिल्ली में लैंड कर गयी, ओम अंगड़ाई लेता हुआ फ्लाइट से उतरा, बहुत ख़ुशी थी ओम को यहां आने की वो अपना लगेज लेकर एयरपोर्ट के वेलकम इंडिया पोस्टर को पार करता हुआ,रेस्टोरेंट पहुंचा और थोड़ा बहुत खाने का ऑर्डर देने के बाद असाइंमेंट के लिए तैयारी करता हुआ एक जगह तलाशने लगा, और गूगल पर ऐसी जगहों को ढूंढने लगा जहा आजतक हिन्दू-मुस्लिम साथ साथ सद्भाव से रहते है,तभी उसकी नज़रों के सामने मुजफरनगर ज़िले के कई गाँव पड़े जहा पर आजतक यानी फ्रीडम से लेकर अब तक ख़ुशी ख़ुशी रहते है, उसने ध्यान देकर उन पर कुछ आर्टिकल पढ़ें और फिर 2 गाँव हर्रा और कुटबी का नाम लिखा और अपनी चाय पुरी करते हुए एयरपोर्ट से बाहर निकला जहा खूब सारी टैक्सी लाइन लगाकर खड़ी थी, वो एक के पास गया और डायरी में लिखें मुज़फ्फरनगर के गांव(कुटबी) का नाम दिखा कर बोला यहां जाना है, टैक्सी वाला बोला "एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे" उसने कहा ओके चलो.. और टैक्सी हाइवे पर होती हुई ,मुज़फ्फरनगर की तरफ चल दी अब ओम इस सोच में था कि पहले गाँव जाए या होटल रुके क्योंकि वक़्त कम था, उसने सोचा कही सामान रख कर डायरेक्ट गाँव चलता हूँ,उसने ड्राइवर से किसी होटल ले जाने को कहा और वापस आने तक रुकने को कहा ड्राइवर होटल ले गया और ओम वहां उतरा रूम के लिए बोला रूम में गया और सामान रख कर बहुत तेज़ी से सिर्फ मुंह ही धोकर जल्दी से वापस टैक्सी में आ गया साथ में उसका सिर्फ ज़रूरी सामान था..

वो मुज़फ्फरनगर में थे जो अमन का शहर था,जो आपसी मोहब्बत का देश था बस उसे अपने असाइनमेंट में इसी बारे में तो लिखना था, तभी कुछ ही देर में ड्राइवर बोला "साहब कुटबी गाँव आ गया" ओम ने नज़रे उठा कर गाँव की तरफ देखा हो लहलाहती फसलों वाला,सोंधी सी खुशबु वाला गांव था जैसा उसने गाँव के बारे में पढ़ा था, वो अपनी निकली डीटेल्स में कुटबी की इकलौती मस्जिद को रिसर्च की पहले नम्बर पर रख तभी रुकी टैक्सी से उतरा और ड्राइवर से बोला इंतज़ार करो बिल बढाओ, में आया ड्राइवर हंसकर बोला "ठीक है साहब" , ओम गांव में अंदर गया जहाँ चौपाल जमी थी वो ख़ुशी ख़ुशी वहां गया और जाकर बोला नमस्ते आप सभी को अपने बारे में और आने की वजह बताने लगा चौपाल पर बैठे लोगों ने वहां ॐ के लिएकि लस्सी मंगाई फिर वहां बैठे चौधरी हरपाल बोले "भई बहुत सही चलो पूछ लो के पूछना है" ओम मुस्कुराया और पुछने लगा ये गाँव की मस्जिद कहां है?? मस्जिद का नाम सुनकर  हरपाल सिंह भड़क कर बोले "किसने कई थारे से यहां कोई मस्जिद नही और न वहां जाने वाला कोई और तुझे के करणा हैं..." ओंम थोड़ा घबरा कर बोला नही नही यहां मस्जिद है न नेट पर इसलिये पूछा और यहां मुस्लिम लोग भी रहते है कहा है वो बस इतना सुनना था कि हरपाल सिंह के साथ बैठा उनके जवान पोता राजीव बोला "अरे बावला हो गया के तू साले कोई मुल्ला न रहता यहां और न रहेगा और साले तू हिन्दू ही है न फिर क्यों पूछें है" बस भीड़ जमा हो गयी सारे मोहल्ले की वहां और ओम घबरा गया और पसीनों में तर हो गया, वो नज़रें घुमाने लगा तभी एक बिल्डिंग  पर उसकी नज़र पड़ी जो बड़े से ताले में बंद थी उसपर "मस्जिद" इंग्लिश में लिखा था ओम इससे पहले उस बिल्डिंग कल देख कर कुछ बोलता टैक्सी ड्राइवर वहां आया और बोला 'चलिये साहब'  ओम ये बाते सुनकर अपने पैरों पर खड़े नही हो पा रहा था और ऊपर से भीड़ देख कर वो घबरा गया था, वो वहां से जाने लगा और पीछे से शोर भी आने लगा वो आगे बढ़ ही रहा था तभी ड्राइवर बोला साहब मरना है क्या जो इस हालात में हिन्दू मुस्लिम की बात करते हो और ऊपर से हिन्दुओ के गाँव में चलो,

वो टैक्सी में बैठे तभी ओम बोला ये इंडिया ही है क्या? और वो अपने पढ़े हुए भारत की छवि के बारे में सोचने लगा,लेकिन समझ नही पा रहा था तभी ड्राइवर बोला अब कहा सर ओम डायरी में देख कर बोला अब हर्रा गाँव ड्राइवर बिना कुछ बोले गर्दन हिलाते हुए उफ़ करते हुए बोला ठीक है... तभी वो हर्रा गांव पहुंचे जो ज़िले के बीचों बीच स्थित एक खूबसूरत गाँव था, वो गांव में घुसा और हिन्दू परिवारों की जानकारी और पिछले गाँव की अजीब याद भुलाते हुए आपसी मोहब्बत ढूंढने गांव में उतरा, जहा उसने कुछ ग्रुप में खड़े लड़के से जाकर पूछा 'एक्सक्यूज़ मि' और अपना नाम और धार्मिक सदभाव वाली सारी चीज़ों के बारे में बताने लगा और पूछने लगा हिन्दू परिवार कहा रहते है? उन लड़कों में से एक लंबे चौड़े लड़के ने उसकी तरफ घूरा और बोला "अब न रहते यहाँ भाग लिए कांदु सब और तू भी निकल जा सही जाना चाहवे है तो समझा नही चल अब निकल" ओम पिछली गलती को जानकर चुप चाप मुड़ा और अजीब तरह से गांव की तरफ देखता हुआ वापस टैक्सी की तरफ चल दिया,और ड्राइवर से होटल चलो कहकर जाम सा होकर बैठ गया,उसके हाथ पैर सुन थे,उसके कपड़े घबराहट के मारे पसीनों में तर थे, ओम ने आँखे बंद कर ली और दुःख की उस धारणा में बहने को तैयार था जिसकी उसने उम्मीद भी नही की थी,तभी गाडी रुकी और वो अपना सामान उठा पैसे मीटर में देख ड्राइवर को देख  मुड़ कर सीधा अपने रूम में गया और बाथरूम में घुस गया,जहा वो तकरीबन आधे घण्टे शावर में खड़ा रहा फिर वापस आकर अपना लैपटॉप निकाल,फेसबुक खोल कर उस पर ऐसा लिख कर फ्लाइट शाम की ही फ्लाइट से बिना वापस चल गया जो कम से कम एक ऐसे छात्र के लिए मुश्किल था जो विदेश में रहते हुए भी गहरा आघात अपने दिल पर ले चला गया, उसने लिखा 'हिंदुस्तान,इंडिया जो अपने सद्भाव,आपसी भाईचारे और अमन के लिए जाना जाता रहा है वो आज पार्टीशन की तरफ है,वो पार्टीशन होने वाली हद में है, भारत एक ज्वालामुखी पर है जो कभी कभी भी फट सकता है'......

असद शैख़..

बुधवार, 10 अगस्त 2016

डीयू_और_तुम

(डीयू और तुम)...

तारिक़- एक्सक्यूज़ मी

रश्मि-यस कहिये मैय आई हेल्प हु।

तारिक़-जी ये स्टाफ रूम किधर है?

रश्मि-यहाँ से लेफ्ट पर सेकंड रूम

तारिक़-शुक्रीया।

ये कहकर तारिक़ चला जा रहा था तभी रश्मि ने आवाज़ देकर कहा तारिक़ तुम नवजीवन(स्कूल) वाले तारिक़ खान तो नही हो।

तारिक़ चोंकते हुए हां रश्मि दौड़ती हुई उसके पास आई और बोली "में तेरी मोटी" रश्मि वर्मा

तारिक़ चौंक गया और आँखों में आंसुओ को लिए मुस्कुराकर दोनों गले लग गए कहा ते तुम क्यों चले आये मेरठ से बस क्या कहु?... 

तारिक़- बस वही था जहा तुम छोड़ कर आई थी।

रश्मि-कंफ्यूज होकर क्या मतलब समझी नही में?

तारिक़- कुछ नही #तुम बताओ तुम #डीयू में कैसे और यहाँ केसी वालंटियर बनी खड़ी हो एक साल में बहुत बदल गयी।

रश्मि- हा थोडा छात्र संघ ज्वाइन किया है वेसे कहा रह रहे हो तुम?

तारिक़-यही हु पीजी लिया है मलका गंज में

रश्मि- वाह(खुश होते हुए)अच्छा लाओ नंबर दो अपना अब तो मिलते रहेंगे।

तारिक़-हा लेलो अच्छा में चलता हु.

रश्मि- ठीक है बाय.

थका हारा हुआ तारिक़ अपने फ्लैट मलका गंज में अंदर पहुंचा और गेट बन्द करके मुंह धोकर पानी को बोतल हाथ में लिए अपने बर्तन, बुक्स और चादरों से भरे  बिस्तर पर लेट गया और टीवी ओं करते हुए लेट गया और अपना नेट स्टार्ट किया आउट स्टार्ट करते ही उसे पहला मेसेज रश्मि का मिला वो हैरत में था..

रश्मि- हेल्लो

तारिक़- हाय

रश्मि- कैसे हो

तारिक़- ठीक हु तुम बताओ

रश्मि-तुमने खाना खाया...

इतनी जल्दी दोनों खूब घुल मिल गए और हसींन हसीन बातें शुरु हुई..

और बातों का सिलसिला लगातार 2 घण्टे चलता हु ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में मिलने के वादे पर खत्म हुआ..

रश्मि- अच्छा बाय गुड नाईट टेक केअर..

तारिक़- बाय ध्यान रखो अपना...

और दोनो कल के रेशमी मुलाक़ात के सपने लिए सो गए...

चमकदार गाड़ी, बड़ा बंगला रश्मि और तारिक़ अपनी गाड़ी में बैठकर बंगले के पास उतर रहे है जहा एक बड़ा क़ालीन बिछा हुआ है और तारिक़ गाडी से उतरता है हाथ बढ़ा कर उसे उतारने ही वाला था की गाडी पर ज़ोर कोई थप ठप करता है तारिक़ गुस्सा हो जाता है और थप थप ज़ोर से होने लगती है.... तभी उसकी आँख दरवाज़े पर होती ठप ठप से खुलती है और वो जाकर गेट खोलता है और दूध लेता है।

तभी उसका फ़ोन बजता है और नींद में ही फ़ोन उठाता है दूसरी तरफ रश्मि थी वो एक दम से जाग जाता है।

रश्मि- कहा हो तुम झुटे, लापरवाह में आधे घण्टे से वेट कर रही हु तुम्हारा .....

तारिक़- अरे आया बस 15 मिनट में पहुंचा ज़ाकिर हुसैन आना है न?

रश्मि-तुम्हे याद है थैंक गॉड

तारिक़- अरे आता हु बाय वेट करो।

रश्मि मुंह बनाकर फ़ोन काट देती है लेकिन तारिक़ जितनी जल्दी रेडी हो रहा था उतना ही हैरत में भी था की इतना अपनापन कैसे और वो जल्दी से बिना कुछ खाये पिए रेडी होकर उसैन बोल्ट बनकर ऑटो पकड़ता है और मीटर पर नज़र मारकर ज़ाकिर हुसैन कह कर बेठ जाता है........

तारिक ऑटो से उतरता है ऑटो वाले को पेसे देता है और भागकर जाकिर हुसैन कॉलेज मे घुसता है, जहा गेट पर जाते ही उसकी टक्कर रश्मि से होती है. वो सम्भल कर रुकता है ,और रश्मि गुस्से की शक्ल मे उसे देखती है.

रश्मि - कहा थे तुम इतनी देर ?

तारिक - सॉरी वो तब्येत सही नही तो याद नही रहा.

रश्मि- (घबराते हुए) क्या हुआ? बताया क्यों नही ? ज़रूर कुछ गलत खाया होगा?...

तारिक - अरे अरे चुप तो हो जाओ . वो बस थकन सी थी थोड़ी और कुछ नही..

रश्मि- अच्छा छोड़ो कही नही जा रहे तबियत सही नही तुम्हारी...

तारिक - फॉरगेट इट(डांटने के अंदाज़ मे कहते हुए) चलो भी..

रश्मि- ओके न गुस्सा मत करो चलो चलते है ..

तारिक़ ने ऑटो वाले को आवाज़ दी और वो दोनों उसमे बेठ कर चल दिए।

तारिक़ और रश्मि चुप और गर्म दोपहर की तरह साथ साथ ऑटों में बेठे हुए मेट्रो स्टेशन तक का सफ़र कर रहे थे दोनों के बीच एक अदद भी बातचीत का दौर नही चल रहा था बरहाल मेट्रो स्टेशन आया और दोनों उतरे तारीक़ रश्मि के पैसे देने स्व पहले ही पैसे दे चूका था और वो मेट्रों स्टेशन में दाखिल हालांकि तारिक़ के लिए ये मेट्रों नई थी लेकिन वो जल्दी ही इसमें घुल मिल गया था दोनों ने एंट्री की मेट्रों का वेट करने लगे तभी मेट्रों आई और लोगों के हुजूम में डगमगाती मेट्रो में वो किसी तरह चले गए।

मेट्रों में दोनों एक़ दूसरे के करीब आकर खड़े हो गए थे और वो भी इतना करीब जिससे दोनों शर्मा रहे थे और वो दोनों एक दूसरे को देखने लगे तभी रश्मि बोली...

रश्मि-कोई चान्स तो नही लेना है न बता दो.....

तारिक़- हंसा और बोला नही यार बिलकुल नही वेसे तुम....

रश्मि- क्या हुआ बोलो चुप क्यों हो गए....

तारिक़- तुम इस भीड़ में अलग सी लगती हो मानों तुम्हे देख के बहुत अपनापन सा लगता,...

रश्मि-अच्छा फ्लर्ट कर रहे हो....

तारिक़- रश्मि...

रश्मि- तारिक़ कुछ नही ....

तारिक़ इस उधेड़बुन में खोया हुआ था की कैसे अपने दिल को बातों को बाहर निकाले कैसे बताये लेकिन ऐसी की ठण्डी हवाओं में रश्मि को अपने पास महसूस कर रहा था और एक अजीब सी ख़ुशी में मुब्तिला था....

तारिक़ और रश्मि साथ साथ मेट्रों में खड़े थे और मेट्रो में भीड़ की इन्तहा बढ़ती जा रही थी,तारिक़ और रश्मि बिलकुल करीब आ गए थे,इतना क़रीब मानों एक साथ खड़े हो और इस हालत में कम से कम तारिक़ बहुत अजीब सा फील कर रहा था और वो हेसिटैत हो रहा था उसे देख कर रश्मि बोली...

रश्मि- तारिक़ आर यू ऑल राइट?

तारिक़-  हा घबराते हुए ...

तभी मेट्रो स्टेशन आया और वो दोनों उतर गए और वाल्क करते हुए इस्कॉन टेम्पल पहुंच गए इन कुछ दिनों की मुलाक़ात में दोनों के बीच नज़दीकियां बढ़ गयी थी और कम से कम रश्मि सुकून महसूस करने लगी थी तारिक़ के साथ लेकिन लेकिन तारिक़ एक अलग फ़िक्र में मुब्तिला था और उसे दो साल पुरानी बात खायी जा रही थी और वो इस्कोन टेम्पल के रस्ते में ही खोया हुआ चल रहा तभी रश्मि ने उसके हाथ में हाथ में डाल लिया लेकिन तारिक़ अजीब सी कैफ़ियत में था और उसे देख कर रश्मि बोली...

रश्मि- तारिक़ क्या हुआ तबीयत ठीक है~?

तारिक़-नही कुछ याद कर रहा था..

रश्मि- ओके चलो काफी घूम लिए अब चले?

तारिक़- हां बिलकुल..में ऑटों कर लेता हुआ

रश्मि-वही सही है..

तारिक़- अच्छा अब कल कहा मिलोगी?

रश्मि-कल हम कैम्पस मिलेंगे  आर्ट फैकल्टी ओके

तारिक़- ठीक है।।

रश्मि को हॉस्टल छोड़ छोड़ तारिक़ अपने रूम पर चला गया लेकिन रश्मि परेशान थी वो अजीब सा कुछ महसूस कर रही थी क्या उसे नही पता और वो बिना खाना खाए अपने रूम मे जाकर सो गयी और खो गयी एक अलग दुनिया मे जहा वो जाना नही चाहती थी मगर जा रही थी. मगर वो बहुत खुश थी।

अगले दिन सुबह तारिक़ के कमरे में ज़ोर ज़ोर से "मटरगश्ती खुली सड़क पे" गाना चल रहा था और तारिक़ बहुत डिस्टर्ब हो रहा था वो झल्ला कर उठा और चिढ़ता हुआ चारों तरफ देखने लगा .तभी उसकी नज़र अपने फ़ोन पर गयी जिसमे वो गाना बज रहा था.उसने जल्दी से फ़ोन रिसीव किया तो वहा से अर्जुन उसका एक मात्र दोस्त था वो बोला...

अर्जुन-अबे भाई क्या भांग पी कर सोया है..

तारिक़-नही यार कल ज़रा रश्मि के साथ था तो थक गया..

अर्जुन-भाई भाभी ढूंढ ली, बताया भी नही.

तारिक़- नही यार तू बोल क्यों फ़ोन किया था?

अर्जुन-भाई असाइनमेंट देना है आज

तारिक़- अबे मर गया चल बाद में बात करता हु...

तारिक़ सर पर हाथ मारने लगा इधर भगा उधर भागा नहाने बाथरूम में घुसा तो फिसल गया,भागता हु गया तो हाथ दीवार पर लग गया ,अब वो बाथरूम में घुसा ही था फोन बजने लगा वहां से भाग कर देखा तो रश्मि थी .उसने रिसीव नही किया और भागकर क्लास पहुंचा इस बीच रश्मि ने कई फोन किया रिसीव नही किये और वो शाम तक देश बदलने जेसी मेहनत में असाइन मेंट बनाता रहा वो वहा से निकला ही था की रश्मि वही खड़ी थी. वो उसे देखकर चौंक गया... रश्मि उससे चिपट कर रोने लगी बहुत रोई...... जारी.....